25 जून 1975 की दरमियानी रात जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की आज़ादी और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर पहरा बैठा दिया गया.. यह पहरा था आपातकाल का. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘आंतरिक अशांति’ के नाम पर देश को 19 महीनों के आपातकाल में झोंक दिया था। पर सवाल उठता है हालात ऐसे बने क्यों ? कब शुरू हुआ यह असंतोष और कैसे टूटी कांग्रेस की दशकों पुरानी सत्ता? आइए, एक नजर डालते हैं उस दौर की विस्तृत टाइमलाइन पर..

1966 – इंदिरा गांधी बनीं प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद, जनवरी में इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लगा था कि वे कठपुतली होंगी, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी अलग राजनीतिक पहचान बना ली.
1969 – कांग्रेस में फूट इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी से अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद कांग्रेस दो गुटों में बंट गई.
• कांग्रेस (ओ) – संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेता
• कांग्रेस (आर) – इंदिरा के नेतृत्व वाली पार्टी

इस विभाजन के बाद इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण और रजवाड़ों की प्रिवी पर्स खत्म करने जैसे साहसिक कदम उठाए, जिससे उन्हें गरीबों का समर्थन मिला.
1971 – भारी जीत और विरोध की नींव इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” के नारे के साथ लोकसभा चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की. लेकिन यही चुनाव बाद में उनके लिए बड़ी मुश्किलों की जड़ बना. रायबरेली से चुनाव हारने के बाद राजनारायण ने उन पर चुनावी गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की.
1973 – 1975 – जनता का गुस्सा और आंदोलन भारत-पाक युद्ध के बाद आई आर्थिक मंदी, महंगाई, बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की कमी ने जनता को सड़कों पर ला दिया.
• गुजरात और बिहार में छात्र आंदोलन हुए.
• जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति की अपील की.
• देशभर में इंदिरा विरोधी आंदोलन तेज हो गया.
12 जून 1975 – इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला अदालत ने इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी पाया और 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इसके बाद इंदिरा गांधी की वैधानिकता पर सवाल उठने लगे और उनकी कुर्सी खतरे में आ गई.
22–24 जून 1975 – विपक्ष का दबाव बढ़ा जेपी और विपक्षी नेताओं ने सरकार विरोधी रैलियों का ऐलान किया। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को पीएम बने रहने की छूट दी लेकिन संसद में वोट देने से रोका.
25–26 जून 1975 – आपातकाल की घोषणा 25 जून की देर रात, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की सिफारिश की। 26 जून को इंदिरा ने आकाशवाणी पर भाषण देकर आपातकाल लागू होने की सूचना दी। इसके साथ सभी विरोधी नेता गिरफ्तार हुए. प्रेस पर सेंसरशिप लगी. संविधानिक अधिकार निलंबित हुए.
1976 – जबरन नसबंदी और जनता का गुस्सा
• संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर ज़बरन नसबंदी अभियान चलाया.
• लाखों पुरुषों की उनकी इच्छा के विरुद्ध नसबंदी की गई.
• इस कार्यक्रम ने जनता के बीच भारी नाराजगी और गुस्से को जन्म दिया.
18 जनवरी 1977 – चुनाव की घोषणा अंतरराष्ट्रीय दबाव और देशभर में असंतोष को देखते हुए इंदिरा गांधी ने आम चुनाव की घोषणा की. सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया गया.
मार्च 1977 – इमरजेंसी का अंत और कांग्रेस की हार
• देश में पहली बार जनता पार्टी को बहुमत मिला.
• इंदिरा और संजय गांधी चुनाव हार गए.
21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त किया गया और लोकतंत्र की वापसी हुई. आपातकाल भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा थी. सत्ता के दुरुपयोग, नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन और जबरन थोपे गए निर्णयों ने देश को झकझोर दिया. लेकिन जनता का निर्णय और 1977 का चुनाव इस बात की मिसाल बना कि भारत में लोकतंत्र को कुछ समय के लिए दबाया जा सकता है पर मिटाया नहीं जा सकता.