जब लगी हाथों में मेहंदी तो उसका गाढ़ा रंग देख सबने कहा,
लगता है तेरा होने वाला पति तुझे बड़ी ही शिद्दत से चाहता हैं,
यह सुन शर्म से लाल होकर वो अपने नये जीवन के ख़्वाबों के ताने-बाने बुनने लगी,
लगन की शुभ घड़ी पर अपने अरमानों की डोली में बैठ अपने बाबुल का घर छोड़ चली,
पिया की घर की चौखट पर हुआ शानदार स्वागत,
एक नयी और बेहद खुबसूरत दुनिया थी उसके लिए,
आँखों के सामने उसके सपनों का राजकुमार खड़ा था,
वो खुश थी अपनी इस दुनिया में,
पर उसकी इन खुशियों की उम्र बेहद ही छोटी निकली,
जिसे समझा था उसने अपने सपनों का राजकुमार,
वो निकला दहेज का लाचारी राक्षस,
सहते-सहते उस राक्षस के जुल्म-ओ-सितम,
उसने अपनी जीने की ख़्वाहिश को कही खो दिया,
हार गई वो अपनी जिन्दगी की जंग,
आखिर में फिर किसी की लाडली दहेज जैसी कुप्रथा की भेंट चढ़ ही गई।।।।
~ अंकिता मिश्रा