मोज़क्किर मोक़तार
एक प्रस्तावित अमेरिकी कानून के तहत विदेशी नागरिकों द्वारा भेजे जाने वाले रेमिटेंस (धन प्रेषण) पर 5% टैक्स लगाने की योजना है, जिससे भारत में चिंता बढ़ गई है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने रविवार (18 मई, 2025) को कहा कि इससे भारतीय परिवारों की आमदनी और रुपये की स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।यह प्रावधान ‘द वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ नामक एक व्यापक विधायी प्रस्ताव का हिस्सा है, जिसे 12 मई को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पेश किया गया था। यह कानून अमेरिका के गैर-नागरिकों, जैसे ग्रीन कार्ड धारकों और H-1B या H-2A वीजा पर काम करने वालों द्वारा किए गए अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रांसफर को लक्षित करता है। अमेरिकी नागरिकों पर यह टैक्स लागू नहीं होगा।GTRI ने कहा कि “अगर यह कानून बनता है, तो भारत को हर साल अरबों डॉलर के विदेशी मुद्रा प्रवाह का नुकसान हो सकता है।” रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को वित्त वर्ष 2023-24 में $120 बिलियन का रेमिटेंस मिला था, जिसमें से लगभग 28% हिस्सा अमेरिका से आया था।GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि “5% टैक्स से पैसे भेजने की लागत काफी बढ़ जाएगी। इससे रेमिटेंस फ्लो में 10-15% की गिरावट आ सकती है, जिससे भारत को हर साल $12-18 बिलियन का नुकसान हो सकता है।”उन्होंने चेताया कि इससे भारत के विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की आपूर्ति कम हो जाएगी, जिससे रुपये पर अवमूल्यन का दबाव बढ़ेगा। “अगर यह झटका पूरी तरह सामने आता है, तो रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ₹1 से ₹1.5 तक कमजोर हो सकता है,” उन्होंने कहा।केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में लाखों परिवार शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए रेमिटेंस पर निर्भर हैं। अचानक इन धनराशियों में गिरावट से घरेलू खपत पर बड़ा असर पड़ सकता है, खासकर तब जब भारत पहले से ही वैश्विक अनिश्चितताओं और महंगाई के दबाव का सामना कर रहा है।श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि इस तरह के टैक्स से वैश्विक पूंजी प्रवाह बाधित होगा, जिससे विकासशील देशों की आर्थिक हालत बिगड़ सकती है और पहले से असमानता झेल रही अर्थव्यवस्थाओं में मांग और स्थिरता और कमजोर हो सकती है।यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब भारत ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में सीमा पार पूंजी प्रवाह की लागत घटाने का प्रस्ताव रखा है।

