
HARSHWARDHAN PANDEY*
राग दरबारी मशहूर हिंदी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की रचना है।
जो एक वंग्यात्मक शैली में लिखी गई है। श्रीलाल शुक्ल को सन् 1969 में इस उपन्यास के लिए
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आज से क़रीब 50 साल पहले राग दरबारी का प्रकाशन हुआ। लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद
कहीं से भी ये नहीं लगता कि यह एक 50 साल पुरानी रचना है।
कहानी शिवपालगंज नाम के एक गाँव की है जो शहर से थोड़ी दूर बसा हुआ है। इसमें लेखक ने ये
दिखाया है कि जहाँ शहर में चीजें विकसित हो रहीं हैं वहीं गाँव में कितना पिछड़ापन है। यहाँ वोट की
कोई कीमत नहीं, वोट ख़रीदे जातें हैं और जब चुनाव आते हैं तो जनता को नेता किस तरह अपने
पक्ष में करते हैं। इसको इन्होंने बड़े अच्छे से बताया है।
कहानी के मुख्य किरदार वैद्यजी हैं। जिनके आस पास पूरी कहानी घूमती है। वैद्यजी राजनीतिक
दृष्टि से कहानी में पूरे गाँव को चला रहे होते हैं। वो जो चाहते हैं, वही हर जगह होता है। एक तरह
से देखें तो गाँव की राजनीति की डोर उनके हाँथो में होती है। इसके अलावा वो एक दवाखाना भी
चलाते हैं। उनका एक कॉलेज भी है। उनके दो बेटे भी होते हैं। एक कॉलेज में गुंडागर्दी और राजनीति
करता है तो दूसरा अखाड़े में पहलवानी।
वैद्यजी के कॉलेज में एक प्रिंसिपल होते हैं। प्रिंसिपल अपने मन का करते हैं। उन्हें वैद्यजी का साथ
मिला होता है। उन्हें ऐसा लगता है कि वो कुछ भी कर सकते हैं। क्योंकि वो एक प्रिंसिपल हैं। दिखावे
के लिए कॉलेज में एक मैनेजमेंट कमीटी है। जिसमें पहली बार वैध जी तो मैनेजर बन गए थें। कमीटी
का फैसला था की हर साल चुनाव होंगे। लेकिन चार-पाँच सालों से चुनाव हो ही नहीं रहे थें। अगर
चुनाव होता है तो दिखावे के लिए होता है। जो दूसरे उम्मीदवार होते हैं। उन्हें डराकर-धमकाकर बैठा
दिया जाता है। वैद्यजी दुबारा से मैनेजर बन जाते हैं और दिखावा इसलिए होता है क्योंकि किसी ने
शिक्षा विभाग के डायरेक्टर को ये कंप्लेन कर दी थी की यहाँ कुछ भी नियम के अनुसार नहीं हो रहा
है और यहाँ कुछ ही लोगों का बोलबाला है।
एक बार दरोगा जी गाँव में चोरी के मामले में एक गुंडे को पकड़ते हैं। तो वहाँ भी वैद्यजी अपना
पावर दिखाते हैं। और दरोगा का तबादला करा देते हैं।
कहानी में एक और किरदार है रंगनाथ का। जो शहर का एक पढ़ा लिखा लड़का है। जो स्वास्थ लाभ
और अच्छी हवा लेने के लिए कुछ दिनों के लिए गाँव, अपने मामा (वैद्यजी) के पास आया होता है।
धीरे-धीरे उसे गाँव में लगता है कि यहाँ के लोग दिखावा बहुत करते हैं। रंगनाथ वैद्यजी के ही घर में
रहता है लेकिन वो धीरे-धीरे समझ जाता है कि कैसे वैद्यजी गाँव के लोगों को बनावटी रूप से ख़ुद
को अच्छा दिखाते है। और गाँव के संसाधनों का उपयोग अपने नीजी इस्तेमाल के लिए करते हैं। तो
धीरे-धीरे रंगनाथ के मन में वैद्यजी के ख़िलाफ़ बातें तो उठती है। लेकिन वो कह नहीं पाता।
कहानी में ये भी दिखाया गया है कि सरकारी कामों में कितना देर होता है और कामों के लिए कभी-
कभी रिशवत भी देने पड़ते हैं। हर बार ये भी दिखता रहा की जिसके पास शक्ति है वही सब कुछ
कर सकता है। अन्यथा व्यवस्था से लड़ने का कोई फायदा नहीं है।
कुल मिलाकर ये कहानी गाँव की है। जिसमें वैद्यजी हैं, प्रिंसिपल साहब हैं, खन्ना मास्टर हैं, रंगनाथ
जी हैं, बद्री पहलवान हैं, रुप्पन बाबू हैं। इन सब के बीच राजनीति चल रही होती है। और गाँव का
विकास धरातल में चला जाता है। कहानी के अंत में वैद्यजी दिखावे के लिए इस्तीफ़ा देते हैं। लेकिन
फिर भी उनके मन में ये चल रहा होता है की किस तरह अपनी सारी ज़िम्मेदारी अपने बड़े बेटे को दे
दें और उसके माध्यम से गाँव की राजनीति को अपने वश में कर के रखें।
इस कहानी में शहर के एक पढ़े लिखे नौजवान को हर एक संस्था भ्रष्ट लगती है। वो हर बार इसी
कोशिश में रहता है की कैसे इस व्यवस्था को सुधारा जाए। उसने अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई
और जब कुछ नहीं बदला तो हार मानकर गाँव छोड़ जाने का फैसला किया। लेकिन गाँव वाले बोलते
हैं, जाओगे कहाँ? हर तरफ़ भ्रष्टाचार और बेईमानी हैं।
*Student (B. A. Journalism & Mass Communication)