Simmi Soni*

पुस्तक “कश्मीर और कश्मीरी पंडित” ( बसने और बिखरने के देढ़ हजार साल) किताब अशोक कुमार पांडेय द्वारा लिखी गई है । अशोक कुमार चर्चित लेखक हैं। इन्होंने कश्मीर पर कई किताबे लिखी है । “कश्मीरनामा” और “कश्मीर और कश्मीरी पंडित” किताब में कश्मीर के इतिहास को विस्तार में दर्शाया गया है।
यह किताब कश्मीर के इतिहास को विस्तार से समझाती है, इसमें कश्मीर के इतिहास से पहले के इतिहास का भी उल्लेख किया गया है । इसके साथ ही कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं के बारे में लिखा गया है। किस प्रकार कश्मीर में मनुष्यों का जन्म हुआ और किस प्रकार से पंडितों और फिर मुसलमानों का कश्मीर में प्रवेश हुआ। इन सारी चीजों का विवरण इस किताब में किया गया है। किस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम के रिश्तों में करवाहट भरी और आगे चल कर किस प्रकार से हिंदू पंडितों को प्रताड़ित किया गया। हर एक छोटी-छोटी जानकारी को इस किताब में विस्तार में बताया गया है। इसमें कश्मीरी संस्कृति, इतिहास, वहां के लोग , पर्यावरण और अन्य वर्तमान की चीजों को सरल तरीके से समझाया गया हैं।
इस किताब की शुरुआत में कश्मीर के इतिहास को बताते हुए 1931 के आन्दोलन के बारे में भी बताया गया है। इसमें कश्मीरी मुसलमानों के प्रति डोगरा राज के अत्याचार और कश्मीरी पंडितों का कुछ हिस्सा उन्हें क्यों खलनायक की तरह देखता था, यह इस किताब में विस्तार से बताया गया है । कश्मीर के इतिहास की अनेक प्रचलित, घटित कहानियों का उल्लेख भी किया गया है। इस किताब में बताया गया है कि आदम सरनदीप ने कश्मीर आकर अगले एक हजार एक सौ दस साल साल तक कश्मीर में मुसलमानों का शासन चला था। एक कथा के अनुसार इसमें यह भी दर्शाया गया है कि एक प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेंशांग बताते है कि कश्मीर मूलतः एक झील थी जिसमें नाग रहते थे । कश्मीर में इसके अलावा 1960 से 1970 के बीच कश्मीर में हुई बुजरहोम की खुदाई के बारे में भी विस्तार में दर्शाया गया है ।
कश्मीर के ब्राह्मण के मूल निवासी होने का दावा प्रस्तुत कर यह पता चलता है कि कश्मीर में ब्राह्मणों के अलावा कोई जाति नहीं थी और ब्राह्मण कही ओर से नहीं आए थे बल्कि कश्मीर के ही मूल निवासी थे । इसमें यह भी बताया गया है की कश्मीरी ब्राह्मणों को सरस्वती नदी के किनारे रहने वाले संत महात्माओं की संतानें बताते हैं। जो कश्मीर में जाकर 2000 ईसा पूर्व बस गए थे और इन्हें शुद्ध आर्य नस्ल बताया जाता है और इनकी उत्पत्ति भारतीय है।
इन सारी चीजों का उल्लेख करने के बाद इस किताब में इतिहास मे रहे हिंदू राजाओं के दौर और कश्मीर ब्राह्मणों के बारे में विस्तार में बताया गया है। इसके बाद कश्मीरी भाषा के बारे में बात होती है । कश्मीरी भाषा के इतिहास और कश्मीरी ब्राह्मणों द्वारा इस भाषा का प्रयोग किया जाना कैसे और कहा से कश्मीरी भाषा का कश्मीर में प्रस्थान हुआ और हर एक जानकारी को विस्तार में बताई गई है ।
आगे बढ़ते हुए लेखक लिखते है कि कश्मीर में हिन्दू राजाओं के काल में ब्राह्मणों की सामाजिक और राजनीतिक परिस्तीति कैसी थी साथ ही कश्मीर में ब्राह्मणों का स्वाभाविक रूप से वहाँ बोध धर्म के पतन और वैदिक धर्म से जुड़ा हुआ है ।
कश्मीर में कैसे इस्लाम से कश्मीरी पंडितों तक का सफर 1320 से 1819 तक था , इसे भी विस्तार में बताया गया है । इसके बाद 1824 से 1924 इन 100 सालो में कश्मीर मे डोगरा राज में कश्मीरी पंडित के बारे में बताया गया है।
1931 से लेकर 1934 के बीच कश्मीर के बनते बिखरते आख्यानों के बारे में बताया गया है । इस समयावधि में मुसलमानों की बड़ी जनसंख्या पूरी तरह से अशिक्षित थी । इसके साथ ही गरीबी और बेहद खराब आर्थिक हालात स्थिति से जूझ रहे थे । जनत की परेशानियों को सुनने के लिए कोई समुचित अवसर नहीं था । इन तमाम परिस्थितियों का उल्लेख विस्तार से किया गया है ।
1947 से 1949 तक का दौर कश्मीर के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण था । इस समय में लोगों के दृष्टिकोण से यह माना गया था कि एक बार जब ब्रिटिश सर्वोच्या की सत्ता समाप्त हो जायेगी तब कश्मीर आजाद हो जाएगा और अपने पैरो पर खड़ा हो जायेगा ।
इसके बाद कश्मीर में 1947 से 1949 तक हुए विभाजन , परिवर्तन और विडंबनाओं का उल्लेख किया गया है , जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार नए देश में नया समीकरण हुआ था । 1949 से 1982 तक में देश , प्रदेश और कश्मीरी पंडित के पुरानी मुश्कलात के बारे में भी दर्शाया गया है ।
1882 से 1989 में किस प्रकार कश्मीर में आतंकवाद का नया दौर शुरू हुआ था और कैसे नई चुनाओ और पुरानी खायत ने इसे बदला , इसके साथ ही उस समय में हो रही अन्य चीजों के बारे में बताया गया है ।
1989 के बाद तक के समय में कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचार , पंडितों के बीच डर , गुस्सा , बेरुखी और घर से बेघर होना , अन्य प्रकार की समस्या पंडितों द्वारा झेला जा रहा था । किताब के आखिर में लेखक बताते है कि जिन पंडितों ने घर नहीं छोड़ा वह वहा घाटी में रह रहे थे और कैसे अपनी जीविका चला रहे थे ।
अशोक कुमार ने इस किताब “ कश्मीर और कश्मीरी पंडित “ में कश्मीर के इतिहास का पूरा उल्लेख किया है और कश्मीर में घटित हर एक पहलु को विस्तार से इस किताब में लिखा है।
*Student (B. A. Journalism & Mass Communication)