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Yash Kesri*

सत्य के मेरे प्रयोग पुस्तक मोहनदास करमचंद गांधी जी के द्वारा लिखे उनके आत्मकथा है और उनके विचारों और जीवन के महत्वपूर्ण प्रयोगों पर आधारित है।इस पुस्तक में गांधीजी ने अपने अहिंसा,सत्यऔर सिद्धांतों के बारे में बताया है।पुस्तक की भाषा सरल एवं रोचक है जिसके कारण पुस्तक को पढ़ते समय आगे और पढ़ने की जिज्ञासा बनी रहती है।
अगर हम बात करें गांधीजी के जीवन के बारे में तो उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था।वह एक बनिए हिंदू परिवार से ताल्लुक रखते थे।उनके पिता कर्मचंद गांधी दीवान थे और उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि एक गृहणी थी।उनकी माता अत्यधिक धार्मिक विचारों की थी। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में अपनी अच्छी आदतों के साथ-साथ अपनी बुरी आदतों का भी जिक्र किया है।उन्होंने अपनी आत्मकथा में बताया है कि कैसे वो पैसे अपने शिक्षक को भी गालियां दिया करते थे हालांकि इसका पछतावा उन्हें आज तक है।कई लोगों की आत्मकथा को मैंने देखा है जिसे वह अपनी अच्छी आदतों का ही जिक्र करते हैं पर बापू ऐसे नहीं थे उन्होंने अपनी अच्छी आदतें बुरी आदतों का खुलकर जिक्र किया है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उन्हें मांसाहार खाने की आदत लग गई थी और वह अपने घर वालों से छुपकर अपने दोस्त के साथ खाने जाया करते थे।उन्होंने बताया है कि उनकी विवाह मात्र 13 वर्ष कीआयु में ही कर दी गई थी। उस समय वह विद्यालय में पढ़ा करते थे।उस वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री इसका नाम कस्तूरबा माखन जी था उनसे उनका विवाह करा दिया गया था।जिनसे उन्हें 4 पुत्र हुए थे हरिलाल,मणिलाल,रामदास और देवदास। गांधी जी बताते हैं कि विवाह के कुछ सालों बाद ही वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए। 3 वर्ष लंदन में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद हुए बैरिस्टर बने सन् 1940 में गांधी जी भारत लौट आए।

इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जन्म से लेकर 1927 तक की घटनाओं का जिक्र किया है।इस पुस्तक में गांधीजी ने छोटे-छोटे कथन के माध्यम से अपनी जिंदगी के हर अनहुए पहलू को छूने की पूरी कोशिश की है।चाहे बचपन में बीड़ी पीने के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराने का हो या फिर अपनी पत्नी के प्रेम में बीमार पिता को नजरअंदाज करने का उन्होंने खुलकर हर पहलू के ऊपर बात की है। चाहे वह पोरबंदर के शुरुआती दिन का हो, स्कूल के जीवन का या 13 साल की उम्र में ही विवाह का हो। उनके पुस्तक के हर एक प्रसंगों के माध्यम से मुझे लगता है कि मुझे उनके जीवन के महान व्यक्तित्व को और करीब से समझने और जानने का मौका मिला। इस पुस्तक में गांधी जी ने बताया है कि वह जीवन भर इस बात से शर्मिंदगी में और दुखी रहते थे कि वह अपने पापा के आखिरी पल में उनके पास नहीं थे बल्कि उन्हें छोड़कर अपनी पत्नी के पास थे।वह कस्तूरबा के साथ अपने बर्ताव को लेकर भी कभी-कभी शर्मिंदगी महसूस करते हैं।वह बताते हैं कि सन उन्नीस सौ छह में उन्होंने अपनी पत्नी को बताकर ब्रह्मचर्य का व्रत भी लिया था।इस पुस्तक में हमें उनके द्वारा राजनीति में किए गए सत्य अहिंसा और सत्याग्रह के सफल प्रयोग की भी पूरी जानकारी मिलती है।
या पुस्तक पढ़ने से पहले गांधी जी को लेकर मेरे विचार ज्यादा अच्छे नहीं थे पर इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मैं यह कह सकता हूं कि गांधीजी एक पवित्र विचारधारा के थे। उनका पूरा जीवन अहिंसा प्रेम दर्पण रहा वह किसी का अहित करने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते थे।मुझे लगता है कि आप तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने अपनी आत्मकथा में अपनी अच्छी और बुरी दोनों आदतों का जिक्र खुलकर दुनिया के सामने किया होगा। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने बताना चाहा कि हमेशा सत्य को अपनाना चाहिए चाहे वह कैसा भी हो। यह किताब हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत उपयोगी होगा मुझे ऐसा लगता है। इस किताब को पढ़कर गांधीजी के जीवन को और करीब से देखा और जान पाएंगे और सीख पाएंगे कि कैसे साथ और अहिंसा के मार्ग पर चला जाता है। महात्मा गांधी के द्वारा लिखी गई उनकी आत्मकथा हमें काफी मदद करती है उनके व्यक्तित्व को और करीब से जानने में हमें समझाती है कि कैसे हमें खुद को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलाना चाहिए। मेरा मानना है कि पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे गांधी जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला और मेरे विचार बदल से गए उनको लेकर मैंने कभी कोई इतने सत्य की राह पर चलने वाला व्यक्ति को नहीं देखा। मेरा मानना है कि इस पुस्तक को सभी को एक बार भी अपने जीवन में पढ़नी चाहिए जिससे वह गांधी जी के साथ और अहिंसा वाले विचार को और करीब से समझ पाएंगे।

*Student (B. A. Journalism & Mass Communication)

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