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लेखका नाम: राममनोहर लोहिया

पुस्तक का शीर्षाक: हिंदू बनाम हिंदू

प्रकाशक का नाम: लोकभारती प्रकाशन

हिंदू बनाम हिंदू पुस्तक का प्रथम पन्ना

लेखक का परिचय
इस पुस्तक के लेखक राम मनोहर लोहिया हैं। जिनका जन्म 23 मार्च, 1910 को यूपी के फैजाबाद में हुआ था। वे एक शिक्षक और देशभक्त हीरालाल के पुत्र थे। जब लोहिया लगभग 10 वर्ष के थे। तब उनके पिता उन्हें गांधीजी से मिलाने ले गए। जिनका उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। लोहिया ने तब बनारस से इंटर की पढ़ाई की और अर्थशास्त्र में डिग्री के साथ कोलकाता से स्नातक किया। उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। जहाँ उन्होंने केवल तीन महीनों में जर्मन भाषा में महारत हासिल करके अपने प्रोफेसरों को आश्चर्यचकित कर दिया। जर्मनी में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लोहिया भारत लौट आए और अपना जीवन स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित कर दिया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और बाद में भारत सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया। 3 जनवरी 1962 को उनका निधन हो गया।

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समीक्षा:–मुझे लगता है कि 1950 में लिखा गया लेख हिंदू धर्म को दो अलग-अलग तरीकों से परिभाषित करता है-उदारवादी और कट्टरपंथी। उदारवादी हिन्दू डॉ॰ राममनोहर लोहिया मानते हैं कि न केवल हिन्दू धर्म में बल्कि धर्म में भी दो प्रकार की शाखाएं रही हैं। उदारवादी और कट्टरवादी जिसके कारण वे परेशान थे। हालांकि, यह विघटन हिंदू धर्म में नहीं हुआ क्योंकि उदारवादी धारा मज़बूत रही है और कट्टरपंथी धारा कमजोर हो गई है।
हालांकि, कुछ कठिनाइयां हैं जिन्होंने इस धर्म को कठिन बना दिया, इस धर्म में बुराइयां आ गईं, लेकिन लोहिया का मानना है कि कुछ चीजें इस धाम के लिए अच्छी भी नहीं हैं। वह जो एक हो गया हो। लेख में ही लोहिया ने बताया कि चार हज़ार साल पहले दूसरे हिंदुओं ने हिंदुओं के कानों में सीसा डाला और उनकी जीभ निकाल ली। इस बात से इंकार नहीं कि पिछले पांच हज़ार वर्षों की उदारवादी धाराओं ने एकता के इन प्रयासों को बल दिया है। हालांकि, इन प्रयासों का तात्कालिक स्रोत-चाहे वह कबीर, चैतन्य और अन्य संतों की शानदार परंपरा हो, या राजा राम मोहन राय और फैजाबाद के विद्रोही मौलवियों जैसे हाल के धार्मिक नेता हों-बहुत स्पष्ट नहीं है। राजनीतिक नेताओं की विरासत-इतनी स्पष्ट नहीं है और यहां तक कि पिछले पांच हज़ार वर्षों की कट्टरपंथी धाराएं भी-एकता के इन प्रयासों को कमजोर कर रही हैं। हालांकि, एक बात तो साफ़ है कि अगर ये कट्टरपंथी धाराएं इस बार फेल हुईं तो दोबारा सिर नहीं उठाएंगी। (हिमांशु कुशवाहा)

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