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Neha Nidhi

अंगरेजी राज में जब पहली बार जनगणना शुरू हुई, तो ऐसे कई समुदाय मिले जो स्वयं को हिंदू
मुस्लिम दोनों बताते थे। इसलिए कि वे इन दोनों परंपराओं में गुंथ चुके थे।
जैसे, गुजरात के momna, जो खतना करवाते, अपने मृत परिजनों को दफनाते, गुजराती कुरान पढ़ते परंतु
बाकी सभी रीति रिवाज में हिंदू थे।
या फिर मटिया कुनबी, जो ब्राह्मणों के द्वारा अपना कर्मकांड करवाते, परंतु पिराना के मुस्लिम संत
इमाम शाह के अनुयायी थे एवं मृत परिजनों को दफनाते थे। या फिर शेखाड़ा जाति, जो विवाह के समय
हिंदू पुजारी और मुस्लिम मौलवी दोनों से कर्मकांड करवाते। या फिर यूपी के kanfata योगी, जो नमाज़
पढ़ते, पर साथ ही संत गोरखनाथ के भक्त थे। उनकी शब्दी गाते, केसरिया वस्त्र पहनते, सारंगी बजाते।
अब वर्तमान में ये बेचारे योगी राज में अपना पुश्तैनी काम छोड़ (सारंगी बजाना, गोरखनाथ के शब्दी
सुनाना) रहे , की कहीं लिंचिग ना हो जाए। ये गंगा जमुनी तहज़ीब ….जब जनगणना अधिकारियों को
ऐसे कई समुदायों से सामना करना पड़ा तो अंग्रेज व्यथित हो गये कि भाई इन समुदायों को कौन सी
श्रेणी में डालें -हिंदू में या मुस्लिम में! इस समस्या को सुलझाने के लिए तत्कालीन सेंसस सुपरिंटेंडेंट,
एडवर्ड अल्बर्ट गेट ने एक सर्कुलर जारी किया, शुद्ध और अशुद्ध हिंदू को चिह्नित करने के लिए ।
इससे ‘गेट सर्कुलर’ नाम से जाना जाता है।
इस सर्कुलर में 10 क्राइटेरिया था-
.1. वे जो ब्राह्मणों की संप्रभुता नहीं मानते थे

  1. वे जो किसी ब्राह्मण से मंत्र नहीं प्राप्त करते थे
  2. वे जो वेदों को नहीं मानते थे
  3. वे जो हिंदू देवी देवताओं की आराधना नहीं करते थे
  4. वह जो ब्राह्मणों द्वारा सर्व नहीं किए जाते थे
  5. जिनके कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं होते
  6. जिन्हें हिंदू मंदिरों में प्रवेश वर्जित था
  7. जिनके छूने से या फिर क़रीब आने से अपवित्रता होती थी
  8. जो अपने मृतक को दफनाते थे; तथा
  9. जो गो मांस खाते थे और गाय की पूजा नहीं करते थे।
    गेट सर्कुलर ने हिंदू सवर्णों में भूचाल ला दिया। अब इस समय तक भारतीयों की राजनीति में हिस्सेदारी
    बढ़ने लगी थी ।
    1857 के विद्रोह के उपरांत, अंग्रेजों ने भारतीयों को तुष्ट करने के लिए तथा इस प्रकार के विद्रोह का
    पुनः उदय होने से रोकने के लिए, भारतीयों को राजनीति में हिस्सेदारी देनी शुरू कर दी थी। 1909 के
    मिंटो मार्ले सुधार में पृथक निर्वाचन मंडल की शुरुआत की गई । सवर्ण हिंदुओं को लगने लगा कि गेट
    सर्कुलर लागू होने से वे राजनीतिक अल्पमत में आ जाएंगे, क्योंकि वे भारतीय जनसंख्या का 15 से
    20% ही हैं। उन्होंने गेट सर्कुलर का विरोध किया और कहने लगे कि हम सभी हिंदू हैं अर्थात गेट सर्कुलर
    में जिन 10 क्राइटेरिया के माध्यम से समुदायों को चिह्नित किया जा रहा था, वे भी हिंदू हैं। इससे पहले
    सवर्ण हिंदू स्वयं को आर्य मानते थे एवं बाकी सभी लोगों को दस्युओं के वंशज। परंतु गेट सर्कुलर के बाद
    उन्होंने आर्य सिद्धांत को त्याग दिया और हिंदू शब्द को अपनाना शुरू कर दिया, क्योंकि यह राजनीतिक
    रूप से फायदेमंद था।
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