अभिषेक राज
पाकिस्तानी हुकुमत उतना भी चालक नहीं है जितना आप सोचते हो बल्कि आपकी सोच से परे है.
सन् 1965 में हुए युद्ध में पाकिस्तान ने कई भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया और हिन्दुस्तान इस बारे में जब पाकिस्तानी हुकुमत से जवाब मांगा तो उन्होंने यह कहकर नकार दिया कि हमने कोई भी हिन्दुस्तानी सैनिक को पाकिस्तान द्वारा बंदी नहीं बनाया है.
सन् 1971 में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान युद्ध के बाद एक नया देश का गठन किया गया जिसका नाम बंग्लादेश रखा गया.उस समय हिन्दुस्तान के शीर्ष पद पर विराजमान थी आयरन लेडि इंदिरा गांधी.सन् 1971 में हुए युद्ध में हिन्दुस्तान को कई हज़ार पाकिस्तानी सैनिक हाथ लगें और साथ ही कई हिन्दुस्तानी सैनिक भी पाकिस्तान के हाथ लगे.हिन्दुस्तानी हुकुमत ने पाकिस्तान को उनके सैनिक उन्हें सम्मान के साथ वापस कर दिया मगर पाकिस्तानी हुकुमत ने एक चाल खेल दिया,उन्होनें इस बार भी सन् 1965 का खेल दुहराया और उन्हें बंदी बना लिया. सभी हिन्दुस्तानी सैनिकों को जेल में कैद कर लिया गया.इन सभी चीज़ों के बाबजूद एक भारतीय सैनिक ने अपनी पत्नी के नाम ख़त लिखा और उस ख़त में यह लिखा था कि हम जिंदा हैं और पाकिस्तानी हुक्मत के कब्ज़ें में हैं.ऐसे में रेड क्रांस की टीम पाकिस्तानी जेलों में भ्रमन करने पहुँची साथ थी वो सैनिक की पत्नी जिनके नाम खत लिखा गया था.पाकिस्तानी हुकुमत को जब ये ख़बर पहुँची कि रोड क्रांस जेल का भ्रमन करने आ रही हैं तो उन्होंने उससे पहले ही सभी सैंनिकों को ऐसे जगह पे शिफ्ट कर दिया गया जहां दूर-दूर तक कोई जेल नहीं था या कहा जाए तो वहां ना कोई शहर थी ना कोई गांव,चारों तरफ जंगल ही जंगल.
मेजर सूरज सिंह एक बेहतरीन सैनिक.कई सैनिकों के साथ मिलकर प्लान बनाते हैं अपने वतन वापस लौटने का. इस बीच इस प्लान को सफ़ल बनाने में एक सिपाही अहमद की जान चली जाती है.शहीद अहमद एक ऐसे सैनिक थे जो अपने साथी सैनिकों को वतन पहुँचाने के लिए अपनी बलिदान खुशी-खुशी दे दी.
14अगस्त यानी पाकिस्तान की आज़ादी का दिन,इसी दिन जहां हिन्दुस्तानी सैनिक को रखा गया था.वहां एक प्रोग्राम होना था सुल्ताना खा़लम का, सुल्ताना खा़लम पाकिस्तान की मसहूर ग़जल गायिका थी.सभी पाकिस्तानी सैनिक आज़ादी के जश्न में डूबे थे और इधर हिन्दुस्तानी सैनिक भागने की कोशिश में जुटे थे.
इस बीच पाकिस्तान की मुहतर्मा सुल्ताना खालम का भी हिन्दुस्तान सैनिकों को साथ मिला एवं पाकिस्तानी मानवाधिकार टीम ने भी भरपूर साथ दिया.पाकिस्तानी हुकुमत बिना किसी पाकिस्तनी नागरिक को सूचना दिए एवं मानवाधिकार को सूचना दिए,कोई भी ग़लत कार्य कर सकता है और करता भी है.उदाहरण हमारे बीच मौजूद है.
इस दौरान 6में से 5 सैनिकों मारे जाते हैं,मेजर सूरज सिंह हिन्दुस्तान की बॉडर पर तो पहुँच जाते हैं मगर कई गोली लगने से उनकी मौत वहीं हो जाती है और जो सैनिक उस समय नहीं भागे थे उनके बारे में यह कहा जाता है की उन्हें अंतिम बार 1988 में देखा गया था.
वर्तमान समय में हिंदू मुस्लिम को लेकर काफी मुठभेड़ देखने को मिलते रहते हैं.अबतक जितनी सैनिक की मौत हुई उनमें मुस्लिम भी थे,हिन्दू भी थे!