1.2014 में हो रहे लोकसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में भाजपा की कोर कमेटी की बैठक हो रही थी.उस बैठक का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को किस लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा जाए.उस वक्त तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने सुझाव देते हुए कहा था कि मोदी को बिहार के पटना से चुनाव लड़ाया जाना चाहिए.उसी वक्त बैठक में मौजूद अमित शाह ने इस फैसले पर असहमति जताते हुए कहा था कि मोदी उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ेंगें.राजनाथ सिंह ने उनके फैसले को नकारते हुए कहा था कि वो भाजपा के अध्यक्ष हैं और वह उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ते आए हैं,उनका सीधा जवाब था नरेंद्र मोदी को कहीं और से चुनाव लड़ाया जाए.शाह यह जानते थे कि अगर उत्तर प्रदेश में धर्म और जाति की जाल को काटना है तो मोदी को वहां से चुनाव लड़ाना बेहद जरूरी है.शाह के बार-बार कहने पर राजनाथ सिंह ने हामी भर दी और वाराणसी लोकसभा सीट से मोदी जी चुनाव लड़ें और जीतने में सफल हुए.
2.मानसा के RBLD स्कूल में उनके साथ पढ़ने वाले उनके सहपाठी सुधीर बताते हैं कि अमित शाह सातवीं कक्षा में पहली बार मॉनिटर का चुनाव लड़े थे. जिसमें उन्होंने 50 बच्चों में 75 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे.यह अमित शाह के जीवन का पहला चुनाव था.उनके एक और सहपाठी बताते हैं कि वो एक जादूगर की तरह किसी की भी गुणों को पहचान लेते थे और एक बार जो लक्ष्य प्राप्त करने की सोच लेते थे तो वह इसे हासिल कर के ही रहते थे.
3.राष्ट्रीय स्वंय सेवक के साथ-साथ उनका झुकाव स्वामी वामदेव के तरफ भी था.वामदेव उत्तर प्रदेश के रहने वाले दशनामी परम्परा के संत थे.वामदेव उन पांच महंतो में से एक थे जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के लिए मुहिम छेड़ी थी.वामदेव के कहने पर अमित शाह हरिद्वार में हुए कुंभ में हिस्सा लिया था.कुंभ मेले के दौरान वामदेव शाह को हर सुबह अलग-अलग महंत के साथ भेजते थे.शाह सभी संतो के साथ समय व्यतीत करते और उन्हीं के साथ लंगर में भोजन किया करते थे और दक्षिणा लेकर वापस आ जाते थे. दक्षिणा में मिले उस पैसे से वह कुंभ में एक साईकिल किराया पर लिया करते थे और उसी साईकिल पर कुंभ का परिक्रमा करते थे.
4.1980 में संघ की शाखा अहमदाबाद में अमित शाह की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई.लेकिन इन दोनों की दोस्ती सन् 1987 में पनपना शुरू हुआ.जब दोनों ने संघ से बीजेपी का दामन थामा.1991 में उन्हें पहली बार गांधीनगर से चुनाव लड़ रहे लाल कृष्ण अडवाणी की कैंपेन का जिम्मा सौंपा गया.उनदिनों इन दोनों की दोस्ती की चर्चा भी खुब होती थी और लाल कृष्ण आडवाणी का हाथ भी इन दोनों पर था.साल 1995 में पहली बार गुजरात में भाजपा की सरकार बनी.कहा जाता है कि इन दोनों के बदौलत ही गुजरात में भाजपा सरकार बनाने में सक्षम हुई थी.उनदिनों ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का खूब दबदबा था.मोदी और शाह ने एक रणनीति बनाई,जो गांव में मुखिया के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली नेता था उसको बीजेपी से जोड़ा और इसी तरह ऐसे 8000 ग्रामीण नेताओं का एक गुट तैयार किया.
5.साल 1998 में केशू भाई पटेल दुबारा गुजरात के मुख्यमंत्री बने और उसके बाद वह मोदी से दुरियां बनाना शुरू कर दिया.उस वक्त भी अमित शाह एकमात्र ऐसे नेता थे जो नरेन्द्र मोदी के साथ चट्टान बनकर खड़े रहे.वो अकेले ही नरेंद्र मोदी के लिए जगह बनाते रहें जिसके फलस्वरूप साल 2001 में नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनें.साल 2002 में गुजरात सरकार में उन्हें गृह मंत्री का पद मिला और उस वक्त वो एक राज्य के गृह मंत्री हुआ करते थे और आज वो भारत सरकार में गृह मंत्री के पद पर कार्यरत हैं.
6.अमित शाह के बारे में कहा जाता है वो अपने जीवन में एक भी चुनाव नहीं हारे हैं.शाह अबतक निचले स्तर से लोकसभा चुनाव तक 29चुनाव लड़ें हैं लेकिन हार का सामना कभी भी नहीं करना पड़ा है.
7.कहा जाता है कि 2014 में बीजेपी के जीत के मास्टरमाइंड अमित शाह ही थे. 2013 में इंडिया टुडे के पत्रकार राहुल कंवल को दिए एक इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा था कि हमारा राष्ट्रीय प्लान तैयार है और हम इसी दिन का इंतजार कर रहे हैं. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने टेक्नोलॉजी का बहुत प्रयोग किया.शाह ने एक आईटी सेल का गठन किया और एक कॉल सेंटर भी बनवाए.जिससे बीजेपी के कार्यकर्ता कॉल कर क्रार्यक्रम की जानकारी प्राप्त करते थे.इसी सेंटर के बदौलत भाजपा ने 20 हजार नए कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़ लिया.अमित शाह का साफ मानना था कि पार्टी वर्करों को अपनी शिकायत सुनाने के लिए घंटों तक किसी नेता का इंतजार ना करना पड़े.
8.अमित शाह कार्यकर्ताओं के बेहद करीबी माने जाते हैं.कहा जाता है कि वे कार्यकर्ताओं के एक भी फोन मिस नहीं करते हैं.कार्यकर्ताओं के साथ वो फोन पर घंटों तक बात किया करते हैं.साल 2017 में अमित शाह को उत्तर प्रदेश विधानसभा की कमान सौंपी गई जिसका नतीजा यह हुआ कि 403 में से 312 सीटें हासिल की और यूपी में सरकार बनाने में सक्षम रहें.अमित शाह के कार्यकाल में भाजपा और सहयोगी पार्टियों ने 21 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही.
9.साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने एक नारा दिया था “अबकी बार 300 पार” जिसे ज्यादातर लोगों ने चुनावी भाषण ही समझा लेकिन वो इस प्रकार रणनीती तैयार किए कि भाजपा ने 303 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया.
10.अमित शाह को बचपन से ही शतरंज में बहुत गहरी रूचि थी.राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह जिस राष्ट्रवाद की बात करते हैं वह चाणक्य से प्रेरित है.
•अमित शाह का अब तक का सफर
1964, 22 अक्तूबरः मुंबई में अमित शाह का जन्म
1978: आरएसएस के तरुण स्वयंसेवक बने
1982: एबीवीपी गुजरात के सहायक सचिव बने
1987: भारतीय जनता युवा मोर्चा में शामिल हुए
1989: बीजेपी की अहमदाबाद शहर इकाई के सचिव बने
1995: गुजरात की जीएसएफ़सी के अध्यक्ष बनाए गए
1997: भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने
1998: गुजरात बीजेपी के राज्य सचिव बने
1999: गुजरात बीजेपी के उपाध्यक्ष बने
2000: अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक के चेयरमैन बने
2002-2010: गुजरात सरकार में मंत्री रहे
2006: गुजरात शतरंज एसोसिएशन के अध्यक्ष बने
2009: सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट एसोसिएशन अहमदाबाद के अध्यक्ष और गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रहे
2010: शोहराबुद्दीन कौसर बी फ़र्ज़ी एनकाउंटर मामले में गिरफ़्तार किए गए
2013: बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बने
2014: गुजरात राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने
2014: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने
2016: सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के सदस्य बने
2016: बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए फिर से चुने गए
2019: भारत सरकार में गृह मंत्री के पद पर कार्यरत हैं