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भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है और देश में अधिनायकतन्त्र से लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए कई महापुरुषों ने अपना प्राण त्याग दिया।उन महापुरूषों में से एक थे शहीदे आजम भगत सिंह।उनका जन्म 28सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के एक छोटे से गांव बंगा में हुआ था जो अभी पाकिस्तान में स्थित है. भगत सिंह कभी भी नहीं चाहते थे कि उनकी फांसी की सज़ा रद्द हो.देश की आजादी के लिए उन्होंने महज 23 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया।बचपन से ही देश के प्रति प्यार और अंग्रेजों से लड़ने के अलग-अलग तरकीब वह अपने पिता के साथ साझा किया करते थे.एक बार वो अपने पिता के साथ खेत घूमने गए उन्होनें अपने से पिता से पूछा कि हम खेती क्यों करते हैं उनके पिता का जबाब था,हमलोग जो भोजन ग्रहन करते हैं वो यहीं उपजता है तभी उन्होनें फिर से सवाल किया तो फिर हम इस खेत में बंदूक की खेती क्यों नहीं करते हैं जिससे ब्रिटिश की खात्मा कर सकें.उस वक्त उनकी उम्र करीब 5 बर्ष की थी.भगत सिंह अक्सर करतार सिंह सराभा की पंक्तियां गुनगुनाया करते थे. उन्हें किताब पढ़ने का बहुत शौक था जब उनकी फांसी लगने का समय आया तब वह लेलिन की जीवनी पढ़ रहे थे.

भगत सिंह क्रांतिकारी कैसे बने?

भगत सिंह जिस दिन पैदा हुए उसी दिन उनके पिता और चाचा जेल से रिहा हुए थे.इनके चाचा अजित सिंह का ज्यादा समय जेल में ही रहते थे.उनके परिवार के सभी सदस्य गांधी जी के विचारों से प्रेरित थे.परिवार में क्रांतिकारी होने की वजह से ही बचपन से ही उन्हें देश के प्रति प्रेम के संस्कार मिले.13 अप्रैल 1919 को हुए जालियावाला कांड ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ भगत सिंह के अंदर आक्रोश भर दिया.क्योंकी इसी दिन जालियावाला बाग में राँलेक्ट एक्ट के विरोध कर रहे लोगों पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी थी.1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन शुरूवात किए.भगत सिंह भी इस आंदोलन का हिस्सा बने.उन्होनें गांघी जी का आदेश पालन करते हुए ब्रिटिश पुस्तक को जला दिया था.5 फरवरी 1922 को गोरखपुर के चौरी-चौरा नामक जगह पर पुलिस ने एक जुलुस को रोकना चाहा जिसकी वजह से जनता क्रोध में आकर थाना को जला दिया जिसमें 22 पुलिसवालों की मौत हो गई.इस घटना से गांघी जी स्तब्घ रह गए और असहयोग आंदोलन यह कहकर वापस ले लिया कि स्वतंत्रता के लिए अभी हमारा देश पूरी तरह से तैयार नहीं है.गांघी जी के इस फैसले से वह नाराज हो गए और अहिंसा की जगह हिंसा को चुनना उन्होने बेहतर समझा.बाद में वो चंद्रशेखर आजाद,सुखदेव और राजगुरू के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी दल बनाया.

भगत सिंह को फांसी की सजा क्यों मिली?

भगत सिंह,राजगुरू और सुखदेव ने लौहोर में एक ब्रिटिश पुलिसकर्मी जाँन साँन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी.8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली के केंद्रीय एंसेबली पर बम फेंक दिया.उसके बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी.26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की घारा 129,302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियन की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंगर्गत अपराधी सिद्ध किया.7अक्टूबर 1930 को भगत सिंह,राजगुरू औऱ सुखदेव के फांसी की सजा और अन्य सभी क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.23 मार्च 1931 को इन तीनों को फांसी दे दिया गया.

भगत सिंह फांसी की खबर सुन अपने साथियों को क्या लिखें?

नवम्बर 1930 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त को लिखा कि मेरे मन में कभी फांसी से बचे रहने का कोई लालच नहीं आया,मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा. आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है और कामना है कि ये और जल्दी आए.

भगत सिंह अपनी शहादत से 1 दिन पहले 22मार्च को भारतीयों को क्या संदेश दिया?

भगत सिंह चिट्ठी में लिखते हैं “मुझमें जीने की चाहत तो है लेकिन मैं आज एक ही शर्त पर जिन्दा रह सकता हूं,अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता.आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं है अगर मैं फांसी से बच गया तो वह जाहिर हो जाएंगी और क्रांती का प्रतिक चिन्ह मध्यम पड़ जाएगा संभवत: मिट ही जाए लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों को भगत सिंह बनने की उम्मीद करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी ज्यादा हो जाएगी कि क्रांती को रोकना साम्राज्यवाद के बूते की बात नहीं रहेगी.

क्या महात्मा गांधी शहीद भगत सिंह की फांसी को रोकने का प्रयास नहीं किया?

कई लोगों को ऐसा लगता है कि महात्मा गांधी भगत सिंह की फांसी को रोकने की कोशिश नहीं की परंतु यह बिल्कुल गलत है.23 मार्च को जब लहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी होनी थी तब उससे कुछ घंटे पहले महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकुमत को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होनें लिखा है कि ब्रिटिश सरकार को फांसी की सजा को कम करने पर विचार करना चाहिए.उन्होनें आगे लिखा की अगर किसी क्रांतिकारी को फांसी की सजी दी जाती है तो देश में अशांती फैल सकता है.महात्मा गांधी इससे पहले 18फरवरी और 19 मार्च को भी लाँड इरविन को चिट्ठी लिखकर फांसी की सजा को उम्र कैद में तकदील करने की बात कहीं थी लेकिन लॉड इरविन ने इस बात से इंकार कर दिया था.

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