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जीवन के इस मोड़ पर,
जिसे अपने बुढ़ापे का सहारा समझा था,
उसनें हमें इस उम्र में वृद्धाआश्रम में छोड़ दिया,
जाते-जाते बोल गया अब से,
हमारे साथ उसका कोई रिश्ता नहीं हैं,
ये सुनकर मानों बूत बन गये थे हम,
हम ये समझ नहीं पा रहे थे,
आखिर हमारी परवरिश में कहाँ चूक हो गई थी,
जो जीवन के इस मोड़ पर,
खुद की संतान ने ऐसा सज़ा दे दी हैं।
जिसे हमें इतने लाड़-प्यार से पाला,
अपनी इच्छाओं को मारकर उसकी हर जरुरतों को पूरा किया,
संसार की हर सुख-सुविधा दी,
हमें भले ही कम खाया हो,
पर उसे हमेशा भर पेट खाना दिया,
अपनी छोटी-छोटी खुशियों को कुर्बान कर,
उसके लिए ढेर सारी खुशियों को जमा किया,
उसे ऊँची शिक्षा दिलाई,
पर आज उसी संतान ने हमें ऐसा सिला दिया,
हमनें तो उसे कभी भी ऐसी परवरिश,
ऐसे संस्कार नहीं दिये थे,
ना ही कभी ऐसे आचरण सिखाये थे,
लाख कोशिशों के बाद भी हमें ये समझ नहीं आ रहा हैं कि,
आखिर हमसे ऐसा कौन सा गुनाह हो गया हैं,
जो जीवन के इस मोड़ पर,
हमें ये सजा मिली हैं….!!

~ अंकिता मिश्रा

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