एक दिन आया संशय मन के भीतर,
कौन है मित्र मनुष्य जीवन के अंदर,
धन है मानव का मित्र?
जिसके लिए बिगड़ा मनुष्य का चरित्र,
धन के लिए ही मनुष्य मर रहा,
धन के लिए ही जीवन में पाप कर रहा,
चोरी करके अपने घर में है धन भरता,
धन के लिए ही दूसरों का जीवन है नष्ट करता,
धन नहीं हो सकता मनुष्य का मित्र,
क्योंकि बिगाड़ा है इसने ही मनुष्य का चरित्र |
तो मनुष्य का मित्र है विज्ञान?
विज्ञान के लिए ही मनुष्य तो कितना है महान,
विज्ञान ही तो मनुष्य की उन्नति का है
कारण,
विज्ञान से ही तो मनुष्य का चलता है भरण पोषण,
पर विज्ञान ही तो विनाश भी है करता,
विज्ञान ही तो नरसंहार भी है करता,
विज्ञान भी नहीं है मनुष्य का मित्र,
बिगाड़ दिया है इसने धरती का चरित्र |
आखिर कौन है मित्र मनुष्य के जीवन में?
सर्वत्र है व्याप्त जो जन जन में,
सच्चा मित्र तो वही है होता,
जो खुद दुःख सहकर मित्र को है सुख देता,
आखिर धरती का ऐसा है कौन सा तत्व,
जिसके कारण है मनुष्य का अस्तित्व,
सहसा मन में आया यह विचार,
कही वृक्ष तो नहीं है इस पहेली का सार,
हाँ–हाँ वृक्ष ही तो है वह सच्चा मित्र,
जिसके कारण है मनुष्य का अस्तित्व,
वृक्ष के कारण ही मनुष्य का है श्वास,
वृक्ष ही मनुष्य जीवन में है बहुत खास,
वृक्ष मनुष्य को दवा है देता,
बदले में उससे कुछ नहीं लेता,
खुद वह सहता है जीवन में दर्द है हरता,
वह खुद धुप में रहकर मनुष्य को है छाया है देता,
प्रदूषण आदि को खुद में समां है लेता,
इसीलिए वृक्ष ही है मनुष्य का सच्चा मित्र,
क्योंकि इसने ही सवारा है मनुष्य का चरित्र |