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सरकार की तरफ से शिक्षा को लेकर करोड़ों का बजट पास होता है, शिक्षा पर तमाम बातें भी होती हैं लेकिन इतने पैसों और तमाम बातों के बाद भी अगर हम सरकारी विद्यालयों की हालत देखें तो रोना आ जाए। कहते है कि कोई भी इमारत बनानी हो तो उसकी बुनियाद अच्छी और मजबूत होनी चाहिए और यदि किसी देश को तेजी से विकास करना है तो उसके स्वास्थ व शिक्षा के स्तर को उपर उठाना होगा लेकिन हमारे देश में ऐसा कुछ नहीं है। अगर यहाँ के राजनीतिक मुद्दों की बात करें तो धर्म (हिंदू मुस्लिम), बिजली, पानी और सड़क है शिक्षा और स्वास्थ तो सबसे बाद में आता है।
2018 में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश कुमार जावेड़कर ने संसद में कहा था की देश के 9 लाख शिक्षक पद खाली है और केवल उत्तर प्रदेश में 2 लाख पद खाली है। कोई भी राजनीतिक पार्टी उत्तर प्रदेश में सरकार बना ले तो लगभग वो आधे भारत में राज करने जितना है लेकिन यहाँ के शिक्षा अस्तर की बात करें तो शिक्षक के पद खाली हैं, देश 20 सबसे खराब प्रदर्शन में 20वाँ स्थान उत्तर प्रदेश का है ये डाटा स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स का है। अब अगर कुछ हिन्दी प्रदेश की बात करें जैसे उत्तर, प्रदेश बिहार, दिल्ली और गुजरात इन सारे राज्यों में शिक्षा स्तर बहुत खराब है और इसके जगह 24 घंटा केवल हिंदू मुसलमान मुदा ठेला जा रहा है।अगर कुछ सरकारी स्कूलों की बात करें तो बच्चे वहाँ टिन के नीचे पढ़ते हैं, पढ़ाने को शिक्षक नहीं हैं और सरकार के तरफ से जो भी बच्चों की सुविधाओं की स्कीम है उसका मुश्किल से 5 या 10 प्रतिसत बच्चों तक पहुँच जाए यही बड़ी बात है।अब इतनी खस्ता हालत में कोई भी गार्जियन अपने बच्चे को इन स्कूलों में क्यूँ डालेगा लेकिन बेचारे गरीब व मजदूर लोगों के बच्चों को मजबूरन यहाँ पढ़ना पड़ता है जहां पर इन बच्चों के भविस्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है। इतने बाद भी पार्टियों व सरकार के नजर में ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।
वहीं सरकारी स्कूलों का फायदा प्राइवेट स्कूल अच्छे से नहीं पूरे मनमाने तरिके से उठा रहे हैं। अगर किसी भी प्राइवेट स्कूल की फिश की बात करें तो माथे से पसीना टपकेगा नहीं पुरी धारा चलने लगेगी और ये भी जितनी फिश लेते है उनती शिक्षा दे नहीं पाते क्यूँकि कई जगहों पर 10 और 12 के बच्चे तो स्कूल जाने की बजाय केवल कोचिंग जाते है।आज प्राइवेट स्कूल शिक्षा के नाम पे बहुत अच्छा व्यापार कर रहें हैं। अब बात करें एक छोटे बच्चे की शिक्षा के शुरूवात की तो उसका दाखिला पहले प्ले ग्रूप में कराया जाता है जहां वो बच्चा घर से दुर रहना सीखता है लेकिन वह जैसे ही पहली या दूसरी कक्षा में जाता है उससे जादा उसके बैग का वजन हो जाता है।स्कूल का प्रिंसिपल बच्चे से कह देगा की तुम्हारी ये किताबें रहेंगी, ये युनिफार्म रहेगा और साथ ही वो दुकान भी बता देंगे की इसी दुकान की चीजें यहाँ इस्तेमाल होतीं हैं अब बेचारा गार्जियन भी उसी दुकान पर जाता है और सामान लेता है और दुकानदार एक मोती रकम वाला बिल पकड़ा देता है जिसका आधा हिस्सा दुकानदार के पास और आधा हिस्सा स्कूल के पास जाता है। इतनी फिश में कोई गरीब इंसान अपने बच्चे को कैसे यहाँ पढ़ाये ये प्राइवेट स्कूल अमीरी और गरीबी के बीच एक बड़ा अंतर पैदा कर रहें हैं। अब बात करें तो जो हमेशा विकाश के नाम पर चुनाव लड़ा जाता है अगर इन आने वाले देश के भविस्यों के ऊपर ध्यान नहीं दिया गया तो विकास से पहले पुरा देश अंधकार में चला जाएगा।

~सौरभ सिंह

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