वायु प्रदूषण ये मुद्दा भी देश हर के मुद्दे की तरह ही है जिसपे चर्चा तो होती रहती पर निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता।आज यदि दिल्ली की जनता को सड़क पर निकलने का मतलब दो जंग लड़ना एक तो ऐसी महामारी कोरोना जिससे पूरा विश्व लड़ रहा है और एक जिससे दिल्ली की जनता पूरे वर्ष लड़ती है जो है वायु प्रदूषण वैसे तो दिल्ली में वायु प्रदूषण पूरे वर्ष भर रहता है पर दिवाली के आसपास इसका प्रकोप इतना बढ़ जाता है की घने कूहरे की तरह जहरीली धुंध व प्रदूषण पुरे वातावरण में फैला रहता है, जिससे घर से निकलना तो दूर घर में ही साँस लेना दूभर हो जाता है। और इसके लिए सरकार के साथ हम सभी जिम्मेदार है और यदि हम ये सोच रहे हैं की सरकार इसका हल सकेले ढूंढ लेगी तो ये गलत है आज हम अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि हमें इस ओर ज़रा भी ध्यान नहीं जाता और जब परेशानी बढ़ती है तो सरकार को कोसते हैं कि सरकार कुछ करती नहीं पर सच्चाई तो ये है कि यदि सरकार कोई कदम भी उठाती है तो बिचौलिए उसे पूरा नही होने देते और हमें इस बात कोई फर्क नहीं पड़ता और यदि ज्यादा से ज्यादा कुछ करेंगे तो चाय पे चर्चा कर लेंगे।
कारण – आज से लगभग 150 वर्ष पहले की तुलना करें तो प्रदूषण के माध्यम में अनगिनत इजाफ़ा हुआ है जिसमें सबसे ज्यादा फर्क औद्योगिक क्षेत्रों के विकास से हुआ है। इतना तो पता था की जैसी पहले प्रकृति थी वैसे आने वाले समय में नहीं रहेगी बदलाव तो होगा पर औद्योगिक क्षेत्रों के विकास से जितनी सुरत 150 वर्षों मेन बदला है उतना कई सौ वर्षों तक की उम्मीद नहीं थी। खैर ये प्रदूषण का केवल एक मध्यम है आज यदि और माध्यमों की बात करें तो लोगों के घर कोई भी खुशी का माहौल हो या कोई भी उत्सव हो तो पटाखे का प्रयोग जरुर होता है और ये पटाखे हवा में ज़हर घोलने का कम बहुत ज़्यादा करते हैं और हमारे देश में तो दिवाली के बाद पटाखे की वजह से पूरे देश की हालत खराब हो जाती है, और जिसमें सबसे ज़्यादा परेशानी का समना देश की राजधानी को करना पड़ता है। और यदि यातायात की करें तो ये भी एक बड़ी समस्या है, प्लास्टिक का उपयोग कम होते पेंड़।
असर – यदि प्रदूषण से कोई अधिक परेसान है तो गरीब हैं। अमीर और आम लोगों के पास अच्छे पर घर है प्रदूषण से बचने के लिए बहुत सारे उपाय है लेकिन ग़रीबों का क्या जिनके पास कोई माध्यम नहीं है, जिनको हर वक्त खुली हवा के बीच रहना एक मजबूरी है । इनके पास इतने पैसे भी नहीं होते की ये मास्क ख़रीद सकें ये बेचारे मूश्किल से एक वक्त का खाना खा ले इनके लिए यही बड़ी बात है। सरकार इनके लिए योजनाएँ बनाती तो है पर वो देश के सबसे बड़े गरीब बिचौलियों के पास ही रह जाती है
निष्कर्ष – पहले तो हमें ये समझना होगा की देश हमारा है और ये प्रकृति हमारी है जैसे हम अपने परिवार केलिए जितने ज़िम्मेदार है अगर हम उसकी थोड़ी ज़िम्मेदारी भी हम लेने लगे तो बहुत सुधर किया जा सकता है। इसमें सरकार के साथ देश के हर एक नागरिक को सोचने के साथ इसपर काम करना होगा। औद्योगिक क्षेत्रों में धुएँ पर रोकथाम लगाने की जरुरत है। यातायात का प्रयोग उतना ही करें जितना जरुरत हो और सबसे ज़रूरी पटाखों पर प्रतिबंध लगाना होगा और हमें भी इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी की पटाखों प्रयोग नहीं करना है। पेड़ों की कटाई रोकने होगी और सबसे ज़रूरी बात हमें नए पेड़ लगाने के साथ उसे बड़ा होने तक ध्यान देना होगा क्यूँकि सरकार प्रतिवर्ष बहुत सारे वृक्ष लगाए तो जातें पर उनमे बचते बहुत कम हैं।
~ सौरभ सिंह