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सोचा भी नहीं होगा हमने या यूँ कहें की गौर नहीं किया कभी…..हमेशा माँ ही क्यों खाना बनती है? जब कभी मेहमान आते है घर पर तो आपकी बहन ही क्यों पानी और चाय ला कर देती है? घर से देर तक बहार रहने पर लड़की को ही क्यों मना किया जाता है? जब कोई पिता अपनी बेटी को किसी बड़े कॉलेज में पढ़ाते हैं तो सब रिश्तेदार ये क्यों कहते है उनसे “लड़की को इतना पढ़ा कर क्या करोगे? शादी करा दो इसकी…बाकि की पढाई ससुराल में पूरी कर लेगी”….अब तुम बड़ी हो रही हो…छोटे कपड़े पहन कर घर से बहार मत जाया करो….लड़कियों को इतनी जोर से हसना नहीं चाहिए…और न इतनी ऊँची आवाज़ में बात करनी चाहिए…..

और भी ऐसी बहोत सी बातें हैं जो सिखाई जाती हैं लड़कियों को

ये मत करो…वो मत करो

आखिर क्यों? वो लड़की है इस लिए?

अगर यही सब बातें समाज के उन ठेकेदारों को कही जाएँ तो क्या वे भी मान लेंगे?

कभी सोचा है उनकी जगह रह कर जिन्हे हर रोज़ ये सब बातें सुन्नी पड़ती है?

आज भी इस विकास की ओर अगर्सित होते भारत में….हम सब आधुनिक टेक्नोलॉजी को तो बहोत आसानी से समझ जाते हैं लेकिन इन छोटी बातों पर गौर नहीं करते

शायद इसी लिए आज भी अजन्मी बच्चियों को उनकी आँखें खुलने से पहले ही बेरहमी से मार दिया जाता है

किस तरफ जा रहे है हम…क्या हासिल कर लेंगे

देश को कितना भी मोर्डेन बना लें…कब तक सोच और नजरिया नहीं बदलता तब तक क्या सच में कुछ बेहतर बदलाव आ पाएंगे

अब भी समय है रुक जाने का…खुद में परिवर्तन लाने का

तो क्यों न आज सब एक जुट हो उन् बच्चियों को बचाने की एक छोटी सी कोशिश करें जो अब तक दुनिया के एक तरफ़ा कायदे क़ानून से बेखबर हैं

एक मिनट सोच कर जरूर देखिएगा

Samridhi Upadhyay

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